/ राफेल सौदे में मोदी चाहते थे बदलाव ताकि इसे अंबानी की कंपनी को दिया जाए: प्रशांत भूषण
- प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा की याचिका पर सुनवाई, राफेल डील की जांच की मांग
- राफेल डील में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट पार्टनर बनाने पर सवाल
- केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट अौर याचिकाकर्ताओं को सोमवार को सौंपे थे राफेल सौदे के दस्तावेज
- दिल्ली. राफेल एयरक्राफ्ट सौदे को लेकर केंद्र सरकार की ओर से सौंपे गए ब्योरे पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हो रही है। शीर्ष अदालत आज तय कर सकता है कि इस मामले की जांच हो या नहीं। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने अपनी दलील में कहा- राफेल डील में बदलाव किया गया क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते थे कि इसे अंबानी की कंपनी को दिया जाए।याचिकाकर्ता के वकील एमएल शर्मा ने कोर्ट से कहा कि सरकार की ओर से अदालत में पेश की गई रिपोर्ट से खुलासा होता है कि यह एक गंभीर घोटाला है। उन्होंने इस यह केस पांच जजों की बेंच के पास ट्रांसफर करने की अपील की।तीन जजों की बेंच कर रही सुनवाईचीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट और याचिकाकर्ताओं को 36 राफेल विमानों की खरीद के संबंध में किए गए फैसले के ब्योरे वाले दस्तावेज सौंपे थे। राफेल की कीमत को लेकर एक अलग सीलबंद दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट को सौंपा गया था।प्रशांत भूषण की दलीलें
- 126 लड़ाकू विमानों को 36 जेट विमानों के साथ बदल दिया गया ताकि सौदा पूरा हो जाए। सरकार की तरफ से एक फर्जी तर्क दिया गया। तीन साल से अधिक समय हो गया अभी तक कोई जेट नहीं आया।
- सरकार कह रही है कि ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है जबकि नियम के मुताबिक ऑफसेट पार्टनर के लिए रक्षा मंत्री के दस्तखत जरूरी होते हैं। यह अपने आप में विरोधाभासी है।
- डीपीपी संशोधन भी साबित करता है। इस समझौते में रिलायंस के पक्ष में संशोधन किया गया।
- सरकार की दलील है कि राफेल की कीमत सार्वजनिक होने से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। सरकार संसद में दो मौकों पर खुद इसकी कीमत बता चुकी है ऐसे में यह कहना कि कीमत बताने से गोपनीयता की शर्तों का उल्लंघन होगा, गलत दलील है।
रक्षा खरीद प्रक्रिया का पालन हुआन्यूज एजेंसी के मुताबिक, दस्तावेज इस बात की पुष्टि करते हैं कि राफेल विमानों की खरीद में रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 की शर्ताें का पालन किया गया। दस्तावेजों में कहा गया है कि फ्रांसीसी पक्ष के साथ बातचीत करीब एक साल चली और समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति की मंजूरी ली गई।राफेल सौदे के लिए एक साल में हुई थीं 74 बैठकेंसरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिए दस्तावेज में बताया कि राफेल विमान खरीदने का फैसला सालभर में 74 बैठकों के बाद किया गया। 126 राफेल खरीदने के लिए जनवरी 2012 में ही फ्रांस की दैसो एविएशन को चुन लिया गया था। लेकिन, दैसो और एचएएल के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाने से ये सौदा आगे नहीं बढ़ पाया। सरकार ने कहा कि एचएएल को राफेल बनाने के लिए दैसो से 2.7 गुना ज्यादा वक्त चाहिए था।
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